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Sunday 10 December 2017

सिर्फ डिग्री नहीं, प्रशासनिक व नेतृत्व क्षमता भी हो प्रोफेसर के चयन का आधार

** मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने विश्वविद्यालयों को दी सलाह
** प्रोफेसरों के खाली पड़े पदों को भी जल्द भरने के दिए निर्देश
नई दिल्ली : विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बनने के लिए चयन का आधार अब अकेले शोध या डिग्रियां ही नहीं होंगी, बल्कि इसके लिए प्रशासनिक और नेतृत्व क्षमता की भी परख होगी। मानव संसाधन विकास मंत्रलय जल्द ही विश्वविद्यालयों में नियुक्त होने वाली फैकल्टी के चयन में इसे अनिवार्य कर सकता है। फिलहाल मंत्रलय ने हाल ही में देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ चर्चा में यह राय साझा की है। कुलपतियों को इस पर अमल करने की सलाह भी दी गई है।
मंत्रलय ने विश्वविद्यालयों को यह सलाह ऐसे समय दी है, जब मौजूदा समय में अकेले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर के करीब छह हजार पद खाली पड़े हैं। इन पदों को भरने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। मंत्रलय ने विश्वविद्यालयों को खाली पड़े पदों को जल्द भरने के निर्देश भी दिए हैं। माना जा रहा है कि विश्वविद्यालयों में खाली पड़े इन पदों के चयन में इस सलाह को आजमाया जा सकता है।
देशभर के चुनिंदा 75 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ 7 और 8 दिसंबर को हुई ‘लीडरशिप डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन’ विषय पर चर्चा के दौरान मंत्रलय ने सभी से विश्वस्तरीय बनने की दिशा में आगे बढ़ने की पहल की। साथ ही संस्थानों को जरूरी संसाधन जुटाने के निर्देश दिए। मंत्रलय से जुड़े अधिकारियों का कहना था कि विश्वविद्यालय ऐसी फैकल्टी के चयन को प्राथमिकता दे, जिनमें शोध और डिग्री के साथ प्रशासनिक और नेतृत्व की क्षमता हो। इनमें उद्योग घराने और सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस दौरान कुलपतियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस पर भी बात की। इस दौरान कुलपतियों ने केंद्रीय मंत्री से सवाल-जवाब भी किया। चर्चा में हार्वर्ड सहित कई विदेशी विश्वविद्यालयों में फैकेल्टी चयन में इस तरह के प्रयासों का हवाला भी दिया गया। उच्च शिक्षा के बजट में कटौती के सवाल पर भी मंत्रलय ने इस दौरान अपनी सफाई दी और कहा कि उच्च शिक्षा के बजट में कोई कटौती नहीं जा रही है, बल्कि अच्छा काम करने वाले संस्थानों को हेफा जैसी एजेंसियों से भी मदद दी जा रही है। चर्चा में विश्वविद्यालयों को ऐसा तंत्र विकसित करने की भी सलाह दी गई।

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