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Wednesday 24 May 2017

इस सत्र के लिए ग्रेस मार्क्‍स देने संबंधी पॉलिसी जारी रखे सीबीएसई : हाई कोर्ट

नई दिल्ली : इस साल 12वीं की परीक्षा दे चुके छात्र-छात्रओं के लिए खुशखबरी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को मुश्किल प्रश्नों के लिए ग्रेस मार्क्‍स देने संबंधी मॉडरेशन पॉलिसी शैक्षणिक सत्र 2016-17 के लिए जारी रखने का अंतरिम आदेश दिया है। इस पॉलिसी को खत्म करने के लिए हाल ही में सीबीएसई ने अधिसूचना जारी की थी, जिसे कुछ अभिभावकों ने चुनौती दी है। अनुमान है कि इस फैसले से इस साल 12वीं की परीक्षा देने वाले करीब 11 लाख और 10वीं की परीक्षा देने वाले नौ लाख छात्र-छात्रओं को लाभ मिलेगा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की खंडपीठ ने कहा कि छात्र-छात्रएं जब इस साल 12वीं की परीक्षा दे चुके हैं तो ऐसे में यह पॉलिसी बदली नहीं जा सकती। सीबीएसई इस पॉलिसी को फिलहाल उन छात्रों के लिए जारी रखे, जो इस वर्ष परीक्षा देने के लिए फॉर्म जमा कर चुके हैं। 
पेश याचिका में कहा गया है कि सीबीएसई ने 12वीं की परीक्षा के बाद नई नीति बनाई है। इस नीति के छात्र-छात्रओं के अंक कम हो जाएंगे। उन्हें अच्छे कॉलेजों में दाखिला लेने में दिक्कत होगी। सबसे अधिक असर उन छात्र-छात्रओं पर पड़ेगा, जिन्होंने विदेश में दाखिले के लिए आवेदन किया है। याची का तर्क था कि केरल, आंधप्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि कुछ राज्यों ने नई नीति को अगले शैक्षणिक सत्र 2017-18 से लागू करने का फैसला लिया है। इससे पहले 22 मई को अदालत ने सीबीएसई के इस फैसले के प्रति नाराजगी जताते हुए इसे अन्यायपूर्ण बताया था। अदालत ने कहा था कि सीबीएसई क्यों नहीं अपनी नई नीति को अगले शैक्षणिक सत्र 2017-18 से लागू करता है।
खेल शुरू होने के बाद नहीं बदले जाते नियम
सीबीएसई द्वारा मॉडरेशन पॉलिसी खत्म करने के मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि जो छात्र-छात्रएं परीक्षा दे चुकें हैं, सीबीएसई उन्हें परेशान न करे। उनमें असुरक्षा की भावना न आने दे। परीक्षा दे चुके छात्र-छात्रओं ने दिन-रात एक कर बड़ी मेहनत की है और ये इस पॉलिसी के हकदार हैं। सीबीएसई इन बच्चों के भविष्य के साथ नहीं खेल सकती। किसी खेल के शुरू होने के बाद उसके नियम नहीं बदले जाते हैं। अदालत ने कहा कि बड़े दुख की बात है कि सीबीएसई यह भूल गई कि विदेश में वर्तमान में मौजूद मूल्यांकन नीति के आधार पर ही भारतीय छात्र-छात्रओं को सशर्त दाखिल मिलता है। इसके लिए वे लोन आदि लेते हैं। यदि मॉडरेशन पॉलिसी हटाई गई तो बच्चों को नुकसान होगा।

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